ग़ज़ल
ASHOK KUMAR
AMBASSADOR OF IFCH
अरूज का मुझे इल्म नहीं है
मैं तो दिले जज़्बात लिखता हूं
कत्ल मेरा करते मैंने गुनहगाढरों को देखा है
सादिक मैं रुह का बिखरते सपनों को देखा है
इतना भी मैं कमजोर नहीं कि टूटकर बिखर जाऊं
नफ़रत की जमीं कातिलों की थी भला मैं क्यूं पछताऊ
सौदागर हैं वो चंद सिक्कों से मुहब्बत करते है
फकीर है हम बस मुहब्बत की दुआ करते हैं
सौदागरों ने मिलकर मेरे बच्चो का आशियाना जलाया है
आंसूओं को पिलाकर मैंने उन्हें हर रात सुलाया हैं
ऐ खुदा ! महफूज़ रखना मेरे कातिलों को
ग़म के समन्दर ने मुझे अशोक बनाया है
भारत
जून 07, 2020
अशोक कुमार
नई बस्ती पट्टी चौधरान
बड़ौत बागपत
उत्तर प्रदेश