2020/06/07

ग़ज़ल ASHOK KUMAR AMBASSADOR OF IFCH अरूज का मुझे इल्म नहीं है ‌ मैं तो ‌दिले जज़्बात लिखता हूं




ग़ज़ल 

 ASHOK KUMAR 
AMBASSADOR OF IFCH 

अरूज का मुझे इल्म नहीं है ‌
मैं तो ‌दिले जज़्बात लिखता हूं 

कत्ल मेरा करते मैंने गुनहगाढरों को देखा है 
सादिक मैं रुह का बिखरते सपनों को देखा है 

इतना भी मैं कमजोर नहीं कि टूटकर बिखर जाऊं 
नफ़रत की जमीं कातिलों की थी भला मैं क्यूं पछताऊ

सौदागर हैं वो चंद सिक्कों से मुहब्बत करते है 
फकीर है हम बस मुहब्बत की दुआ करते हैं

सौदागरों ने मिलकर मेरे ‌बच्चो का आशियाना जलाया है 
आंसूओं को पिलाकर मैंने उन्हें हर रात सुलाया हैं 

ऐ खुदा ! महफूज़ रखना मेरे कातिलों को 
ग़म के समन्दर ने मुझे अशोक बनाया ‌है 

भारत 
जून 07, 2020
अशोक कुमार 
नई बस्ती पट्टी चौधरान 
बड़ौत बागपत 
उत्तर प्रदेश