2020/07/22

भारत जुलाई २२,२०२० ©️®️ अशोक कुमार नई बस्ती पट्टी चौधरान बड़ौत बागपत उत्तर प्रदेश






दिल से ! 

 आजकल वों हमसेआंखे चुराने लगे 
      नंबर हमारे मोबाईल का देख
        उठाने से कतराने लगे 
 जो कल तक बाते करते थे महलों की 
          बंद है उन चार दिवारी में 
  हम तो फकीरी में भी अच्छे इतराने लगे 
        पानी पीकर ,हवा खिलाकर 
       अपने बच्चों को सुलाने लगे 
   बेशर्म होकर को अपने बटुए से वो 
         हमे फटे नोट दिखाने लगे 
 कल तक बाते करते थे धर्म , इंसानियत की 
   अब बंद है व्यापार के तराने गाने लगे 
     चंद सिक्कों की खातिर ईमान को
  भुला इंसान इंसानियत से कतराने लगे 
           डरे है कुछ इस तरह 
अपनी कमजोरी को , अपनों से छिपाने लगे
       खुदा कहते थे जो कल तक
 अपने को इस जमी का, गिरे वो इस कदर 
        संभलने में भी लड़खड़ाने लगे
   फकीरों को देखो भुलाकर अपने दर्द 
        अपनों से हाथ मिलाने चले 
 दर्द छलका तो जमी समंदर न बन जाए 
   इसी को सोच अपनों को बचाने चले 
मौत से मिला नज़रे हम मौत को हराने चले 
        जिंदगी एक जंग है दोस्तों 
      कायरता त्याग वीर की तरह 
  युद्ध भू में दुश्मनों को धूल चटाने चले ।